Description
Kali kavacham is a powerful Hindu mantra dedicated to goddess kali . It's protective prayer that seeks the divine intervention and blessing of kali to shield the practitioner from the various negativities and dangers. The word "kavacham" translates to "armor" or "shield" emphasizing its role to providing spiritual protection.
The verses often describe the fearsome and protective aspects of goddess kali , invoking her energy for safeguarding against both physical and spiritual
To know more about this
Kali kavach lyrics
Kali kavacham
Narad uvacha
natha tvatto hi sarvadanya bhadralyashcha sampratam .(1)
narayan uvacha
shrunu narad vakshyami mahavidayam dashakshrim ,
gopaniyam cha kavacham trishu lokeshu durlabham ( 2)
om hrim shrim klim kalikayai shvaheti cha dashaksharim
durvasa hi dadou radnye pushkare suryaparvani (3)
dashalakshajapenaiv mantra siddhi kurta pura
panchalakshajanaiv pathan kavachamutamam (4)
babhuv siddhakavachoapyayodhyamajagam saha
krutsnaam hi pruhivim jigye kavachasya prasadataha (5)
narad uvacha
shruta dashakshari vidya trishu lokeshu durlabha
adhuna shrotumichhami kavacham burhi me prabho (6)
narayana uvacha
shruta vakshyami viprendra kavacham paramadbhutam
narayanen yad dattam krupaya shooline pura (7)
tripurasya vadhe ghore shivasya vaijayay cha
tadev shoolina dattam pura durvasase mune (8)
durvasasa cha yad dattam suchandray mahatmne
atiguyataram tattvam sarvamanteoughavighraham (9)
om hrim shrim klim kalikayai svaha me patu mastakam
klim kapalam sada patu hrim hrim iti lochne (10)
om hrim trilochane svaha nasikam me sadavatu
klim kalike raksha raksh svaha dantam sadavatu (11)
hrim bhadrakalike svaha patu meadharyugakam
om hrim hrim kalikayai svaha kantham sadavatu (12)
om hrim kalikayai svaha karnyugamam sadavatu
om krim krim klim kalyai svha skandham patu sada mama (13)
om krim bhadrakalyai svaha mama vakshaha sadavatu
om krim kalikayai svaha mama nabhim sadavatu (14)
om hrim kalikayai svaha mama prushtam sadavatu
raktabijavinashinyai svaha hastuo sadavatu (15)
om hrim klim mundamalinyaisvaha paduo sdavatu
om hrim chamundayai svaha sarvangam me sadavatu (16)
prachayam patu mahakali aagneyyam raktadantika
dakshine patu chamunda nairutyam patu kalika (17)
shyama cha varne patu vayvyam patu chandika
uttare vikatasya cha aishanyan sattahasini (18)
urdhavam patu liljihva mayadya patvadhaha sada
jale sthale chantarikshe patu vishvaprasuhu sada (19)
iti te kathitam vatsa sarvamantroughvighram
sarvesham kavachanam cha sarbhutham paratparam (20)
saptadvipeshvaro raja suchandroasya parsadataha
kavachasyaparsaden mandhata prutivipatihi (21)
pracheta lomshashchaiva yataha siddho babhuva ha
yato hi yogino shreshtaha soubharini pappalayanaha (22)
yadi syat siddhkavacha sarvasiddhishvaro bhavet
mahadanani sarvani tapansi cha vartani cha|
nishchitam kavachasya kalam narhati shodashim (23)
idam kavachamadnaytva bhajet klim jagatprasum
shatalakshaprajaptoapi na mantraha siddhidayakaha (24)
| iti shribrahmavaivarte kalikakavacham sampoorna |
काली कवच लिरिक्स इन हिंदी
नारद उवाच
कवचं श्रीतोयागचमी तां च विद्या दशाश्रीम |
नाथ तत्त्वों हि शर्वाज्ञा भद्रकालायै साम्प्रतम || १ | |
नारायण उवाच
श्रुणु नारद वक्ष्यामि महाविद्यां दशाश्रीम |
गोपनीयं च कवचं त्रिषु लोकेषु दुर्लभं | | २ | |
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहेति च दशाश्ररीमः
दुर्वासा हि ददौ राज्ञे पुष्करे सुर्यपवर्णि | | ३ | |
दशलक्षजपेनेव मंत्रसिद्धि कृता पुरा |
पञ्चलक्षजपनेव पठन कवचमरतमं || ४ ||
बभूव सिद्धकवचोअदायमाजगाम सः |
कृतस्त्रा हि पृथिवीं जिग्ये कवचस्य प्रसादतः || ५ ||
नारद उवाच
श्रुता दशाक्षरी विद्या त्रिषु लोकेषु दुर्लभा |
अधुना श्रोतमिछायामि कवचं ब्रूहि मे प्रभु || ६ ||
नारायण उवाच
श्रुणु वक्ष्यामि विपेन्द्र कवचं प्रमाद्भुतम |
नारायणेन यद् दत्तं कृपया शुलिने पुरा || ७ ||
त्रिपुरस्य वधे घोरे शिवस्य विजयाय च |
तदेव शूलिना दत्तं पुरा दुर्वाससे मुने || ८ ||
दुर्वाससा च यद् दत्तं सुचन्द्राय महात्मने |
अतिगुह्यतरं तत्त्वं सर्वमन्त्रोगविग्रहं || ९ ||
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा मे पातु मस्तकम |
क्लीं कपालं सदा पातु ह्रीं ह्रीं ह्रीमिति लोचने || १० ||
ॐ ह्रीं त्रिलोचने स्वाहा नासिकां मे सदावतु |
क्लीं कालिके रक्ष रक्ष स्वाहा दन्तं सदावतु || ११ ||
ह्रीं भद्रकालिके स्वाहा पातु मेधरयुग्मकम |
ॐ ह्रीं ह्रीं क्लीं स्वाहा कण्ठं सदावतु || १२ ||
ॐ ह्रीं कलिकाये स्वाहा कर्णयुगम सदावतु |
ॐ क्रीं क्रीं क्लीं काल्यै स्वाहा स्कन्धं पातु सदा मम || १३ ||
ॐ क्रीं भद्रकाल्यै स्वाहा मम वक्षः सदावतु |
ॐ क्रीं कालिके स्वाहा मम नाभिं सदावतु || १४ ||
ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा मम पृष्ठं सदावतु |
रक्तबीजविनाशने स्वाहा हस्तो सदावतु || १५ ||
ॐ ह्रीं कलीं मुण्डमालिन्यै स्वाहा पादौ सदावतु
ॐ ह्रीं चामुण्डायै स्वाहा सर्वाङ्गं मे सदावतु || १६ ||
प्रंचाया पातु महाकाली अंगरायां रक्तदन्तिका |
दक्षिणे पातु चामुण्डा नक्षत्रयं पातु कलिका || १७ ||
श्यामा च वारुणे पातु वायव्य पातु चण्डिका |
उतरे विकटास्या च ऐशान्यां सट्टहासिनि || १८ ||
ऊधर्व पातु लोलजिहां मायाद्या पात्वधा सदा |
जले स्थले चान्तरिक्षे पातु विश्वप्रसू सदा || १९ ||
इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रोग्रविग्रहम |
सर्ववर्षा कवचाना च सारभूतं परात्परम || २० ||
सप्तद्वीपेश्वरो राजा सुचन्द्रोअस्य प्रसादतः |
कवचस्य प्रसादेन मांधाता प्रिथ्वीपति || २१ ||
प्रचेता लोमशशेव यतः सिद्धो बभूव ह |
यतो हि योगिनां श्रेष्ठः सौभरि: पिप्पालायन || २२ ||
यदि स्यात् सिद्धकवचः सर्वसिद्वीश्वरो भवेत् |
महादानानि सर्वाणि तपांसि च व्रतानि च |
निश्चितं कवचचास्य क्लां नर्हन्ति षोडशीम || २३ ||
इदं कवचमज्ञात्वा भजेत कालीं जगतप्रासूम |
शतलक्षप्रजापतोअपि न मन्त्रः सिद्धिदायकः || २४ ||
|| इति श्री ब्रह्मवैवर्ते कालीकवचं सम्पूर्णम ||
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kali kavach meaning in hindi
|| माँ काली कवच ||
नारद जी ने कहा -
सर्वाज्ञा नाथ ! अब में आपकी वाणी से भद्रकाली - कवच को सुनना चाहूँगा |
नारायण बोले : नारद मैं तीनो लोको मे दुर्लब्भ उस गोपनीय कवच को बताता हु ,
ध्यान से सुनो |
ह्रीं श्रीं क्लीं कालीके स्वाहा यही दसाश्र्री विद्या है | इसे पुष्कर तीर्थ मे सूर्या - ग्रहण के अवसर पर दुर्वासा ऋषि राजा को दिया था |
उस समय राजा ने दस लाख जप करके मंत्र सिद्ध किया था , पांच लाख जप से ही सिद्ध कवच हो गए |
तत्पश्च्यात वे अयोध्या मे लोट आये और कवच की कृपा से सारी पृथ्वी को जीत लिया |
नारद जी ने कहा - तीनो लोको मे दुर्लभ दशाश्र्री विद्या को सुना | अब प्रभु आप इस कवच का वर्णन करे |
भगवान नारायण बोले - विपेन्द्र ! पूर्वकाल मे त्रिपुर वध के अवसर पर महादेव की जीत के लिए नारायण ने कृपा करके महादेव को अधभुत कवच प्रदान किया जिसका मे वर्णन करता हू |
मनु वह कवच बहुत गोपनीय तथा मंत्रो के समूहों का मूर्तिमान है |
पूर्वकाल में शिवजी ने ऋषि दुर्वासा को दिया था और जिसे ऋषि दुर्वासा राजा सुचन्द्र को दिया था |
हीं श्रीं कलीं कलिकाय स्वाहा मेरे मस्तक की रक्षा करो |
काली कपाल की तथा नेत्रों की रक्षा करो , त्रिलोचने स्वाहा सदा मेरी नासिका (नाक ) की रक्षा करो |
क्रीं कालिके रक्ष -२ स्वाहा सदा दातो की रक्षा करो , हीं भद्रकालिके स्वाहा सदा मेरे होठों की रक्षा करो |
हीं -२ कालिके स्वाहा सदा मेरे कंठ की रक्षा करो | हीं कालिकायै स्वाहा मेरे कानो की रक्षा करो |
क्रीं क्रीं कल्ये स्वाहा सदा मेरे कंधो की रक्षा करो | क्रीम भद्रकाल्यै स्वाहा सदा मेरे वक्ष - स्थल की रक्षा करो |
क्रीँ कलिकाये स्वाहा सदा मेरी नाभि की रक्षा करो | हीं कालिकायै स्वाहा सदा मेरे पृष्ट -भाग की रक्षा करो
रक्तबीजविनाशनी स्वाहा सदा मेरे हाथो की रक्षा करो | हीं क्लीं मुण्डमालये स्वाहा सदा मेरे पेरो की रक्षा करो |
हीं चामुण्डाय स्वाहा सदा मेरे सर्वा -डंग की रक्षा करो |
पूर्व मे महाकाली और अग्निकोणः में रक्तदन्तिका रक्षा करे |
दक्षिण मे चामुण्डा रक्षा करे | नक्षत्रायकोण मे कलिका रक्षा करे , पश्चिम मे श्यामा रक्षा करे |
वायवाये कोण मढे चड़िका , उत्तर मे विकटास्या ईशानकोण में अट्ठ हाशिनी रक्षा करे |
ऊधर्वभाग (पेट का हिस्सा ) लोलजिव्हा रक्षा करे | अधो - भाग में सदा अधोमाया रक्षा करे|
जल , स्थल और नभ में सदा विश्वप्रसू रक्षा करे | वत्स !
यह कवच सभी मंत्रो के समूहों का मूर्तिरूप है , समस्त कवचो का सारभूत और उत्तम से भी उत्तम है , मेने तुम्हे बता दिया | इस कवच की कृपा से राजा सुचन्द्र का सातो द्वीपों पर अधिपत्य हुआ था |
इसी कवच के प्रभाव से पृथ्वीपति मान्धाता सप्तद्वीपपति पृथ्वी के अधिपति हुए थे |
इसी के बल से प्रचेता और लोमेश सिद्धः हुए थे इसी, इसी के बल से सुभरि और पिप्लायन योगिओं मे श्रेश्ठ कहलाये , जिससे यह कवच सिद्ध होता , कि सारी सिद्धिओं का मालिक बन जाता है |
सभी दान , तपस्या और व्रत इस कवच की सोलवी कला बराबरी नहीं कर सकते , यह बिलकुल सत्य है |
जो इस कवच को जाने बिना जगतमाता काली का भजन करता है , उसके लिए एक करोड़ जप करने पर भी यह मंत्र सिद्धिदायक नहीं होता |